आजादी के बाद सरदार पटेल क्यों नहीं बन पाए प्रधानमंत्री?

15 अगस्त 1947 को जब देश आजाद हुआ तो पंडित जवाहर लाल नेहरू देश के पहले प्रधानमंत्री बने। नेहरू प्रधानमंत्री कैसे बने?

अक्सर यह सवाल उठाया जाता है कि सरदार पटेल अगर देश के पहले प्रधानमंत्री होते तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। क्या सरदार पटेल खुद प्रधानमंत्री नहीं बनना चाहते थे या सरदार पटेल को प्रधानमंत्री नहीं बनने दिया गया।

उस समय कांग्रेस अध्यक्ष का चुनाव प्रांतीय कांग्रेस कमेटियां करती थीं। खास बात थी कि किसी भी प्रांतीय कमेटी ने जवाहर लाल नेहरू के नाम का प्रस्ताव नहीं किया था।

कांग्रेस की 15 प्रांतीय कमेटियों से 12 सरदार वल्लभ भाई पटेल के पक्ष में थीं। इसकी वजह थी कि सरदार पटेल की संगठन पर पकड़ काफी मजबूत थी। उस समय तीन कमेटियों ने जेबी कृपलानी और पी. सीतारमैया का नाम प्रस्तावित किया था।

कांग्रेस की बैठक से पहले महात्मा गांधी ने मौलाना को पत्र में लिखा था, 'अगर मुझसे पूछा जाए तो मैं जवाहर लाल को ही प्राथमिकता दूंगा। मेरे पास इसकी कई वजहें हैं। अभी उसकी चर्चा क्यों की जाए?' महात्मा गांधी के इस रुख के बावजूद नेहरू के नाम पर सहमति नहीं बनी।

अंत में आर्चाय कृपलानी को यह कहना पड़ा कि मैं बापू की भावनाओं का सम्मान करते हुए जवाहर लाल नेहरू के नाम का प्रस्ताव करता हूं। इस बात के साथ ही उन्होंने एक कागज पर जवाहर लाल नेहरू का नाम लिखकर आगे बढ़ा दिया। कार्यसमिति के कई सदस्यों ने इस पर हस्ताक्षर किए।

इस कागज पर सरदार पटेल ने भी हस्ताक्षर किया। बैठक में महासचिव जेबी कृपलानी ने एक और कागज पर सरदार पटेल से उम्मीदवारी वापस लेने का जिक्र किया। बैठक में जेबी कृपलानी ने सरदार पटेल से स्पष्ट रूप से कह दिया कि वह अपनी उम्मीदवारी वापस लें और जवाहर लाल नेहरू को कांग्रेस अध्यक्ष बनने दें।  

अंतिम तौर फैसला महात्मा गांधी पर छोड़ दिया गया। इसके बाद महात्मा गांधी ने नेहरू के नाम वाला कागज सरदार पटेल की तरफ हस्ताक्षर करने के लिए बढ़ा दिया। महात्मा गांधी के निर्णय का सम्मान करते हुए सरदार पटेल ने अपनी उम्मीदवारी वापस ले ली।

आजादी के बाद 15 अगस्त 1947 को सरदार पटेल को उप प्रधानमंत्री बनाया गया। पटेल के पास आजाद भारत के गृहमंत्रालय का भी जिम्मा दिया गया। उनके पास सूचना और प्रसारण मंत्रालय का भी प्रभार था। 15 दिसंबर 1950 को सरदार पटेल ने अंतिम सांस ली।